Akbar Birbal Stories in Hindi With Moral – अकबर बीरबल स्टोरीज

इस लेख में हमने अकबर बीरबल की जबजस्त कहानियाँ दी हैं , जो की पढ़ने में बहुत रोमांचक लगेंगी। अकबर बीरबल की कहानियाँ बच्चों के साथ-साथ बड़ो को भी बहुत पसंद हैं। यह सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले कहानियाँ में से एक हैं। इन कहानियों को पढ़कर अपने बच्चो को सुनायें और उन्हें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। उम्मीद है निचे दी गई कहानियाँ आपको पसंद आएंगी।

Akbar Birbal Stories in Hindi

 

Akbar Birbal Stories in Hindi

Story 1

अकबर और बीरबल की कहानियाँ भारतीय लोककथाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इनमें से एक प्रसिद्ध कहानी है “खाली हाथ दरबार में“।

एक दिन बादशाह अकबर अपने दरबार में बैठे थे और बीरबल के चतुराई की प्रशंसा कर रहे थे। उन्होंने बीरबल से पूछा, क्या तुम खाली हाथ दरबार में आ सकते हो ? बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा, जी हाँ, जहांपनाह।

अकबर को यह सुनकर आश्चर्य हुआ और उन्होंने अगले दिन बीरबल को खाली हाथ दरबार में आने का आदेश दिया। बीरबल ने यह चुनौती स्वीकार की।

अगले दिन, बीरबल दरबार में पहुँचे। सभी दरबारी उत्सुकता से देख रहे थे कि बीरबल खाली हाथ कैसे आएँगे। बीरबल के हाथ में कुछ नहीं था, लेकिन उनके पास एक कपड़ा था जिसमें उन्होंने अपने सिर को ढंका हुआ था।

अकबर ने हंसते हुए कहा, बीरबल, यह क्या है ? तुमने तो कहा था कि तुम खाली हाथ आओगे, लेकिन तुमने अपने सिर को कपड़े से ढंक रखा है।

बीरबल ने नम्रता से उत्तर दिया, “जहांपनाह, मैं खाली हाथ ही आया हूँ। मेरे सिर पर जो कपड़ा है, वह मेरे सिर का हिस्सा नहीं है, और मैंने इसे अपने हाथों से नहीं पकड़ा है। यह कपड़ा तो सिर पर रखा हुआ है, इसलिए मैं इसे हाथों में नहीं गिनता “।

अकबर ने हंसते हुए कहा, बीरबल, तुमने फिर से मुझे चकित कर दिया। तुम वास्तव में बहुत बुद्धिमान हो। इस तरह बीरबल ने अपनी बुद्धिमानी  से बादशाह अकबर को प्रभावित किया और सभी दरबारियों को एक बार फिर से अपनी चतुराई का परिचय दिया।

इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि बुद्धिमत्ता और तर्कशक्ति से किसी भी समस्या का समाधान किया जा सकता है। बीरबल की चतुराई और अकबर की न्यायप्रियता इस कहानी में स्पष्ट रूप से झलकती है। यही कारण है कि अकबर और बीरबल की कहानियाँ आज भी प्रचलित हैं और लोगों को मनोरंजन के साथ-साथ नैतिक शिक्षा भी देती हैं।

Akbar Birbal Stories in Hindi With Moral

Story 2

यह अकबर और बीरबल की एक और प्रसिद्ध कहानी है जिसका शीर्षक है “चार मूर्ख”

एक दिन, बादशाह अकबर ने दरबार में सभी मंत्रियों और दरबारियों के सामने एक चुनौती रखी। उन्होंने कहा ,मेरे राज्य में कितने मूर्ख हैं, यह जानना बहुत जरूरी है। मुझे किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता है जो राज्य में जाकर मूर्खों की पहचान करे।

सभी दरबारी चुप थे और सोच रहे थे कि यह कैसे संभव होगा। तभी बीरबल आगे आए और कहा, ” जहांपनाह, यह कार्य मेरे लिए छोड़ दीजिए। मैं जल्द ही आपको उत्तर दूंगा “।

अकबर ने बीरबल को अनुमति दी और बीरबल ने काम शुरू किया। कुछ दिनों बाद, बीरबल दरबार में लौटे और उन्होंने अकबर को बताया, जहांपनाह, मैंने चार सबसे बड़े मूर्खों की पहचान की है।

अकबर ने उत्सुकता से पूछा, “कौन हैं वे चार मूर्ख ” ?

बीरबल ने उत्तर दिया, पहला मूर्ख वह आदमी है जिसने बिना सोचे-समझे अपने घर का सारा धन एक व्यापारी को दे दिया, यह सोचकर कि वह उसे दोगुना करके लौटाएगा। लेकिन वह व्यापारी धन लेकर भाग गया।

अकबर ने कहा, “हाँ, वह सचमुच मूर्ख है। दूसरा कौन है ? बीरबल ने कहा, दूसरा मूर्ख वह आदमी है जो अपने ऊँट पर बैठा था और अपनी तलवार से ऊँट की पीठ पर चढ़ने के लिए जगह बना रहा था। उसे लगा कि इससे ऊँट पर चढ़ना आसान हो जाएगा।

अकबर ने हंसते हुए कहा, वह तो बड़ा मूर्ख है! तीसरा मूर्ख कौन है ?

बीरबल ने कहा, तीसरा मूर्ख वह आदमी है जो एक कूँए में पानी की जगह पत्थर डाल रहा था, यह सोचकर कि इससे कूँए का पानी बढ़ जाएगा। अकबर ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘वह तो सचमुच मूर्ख है और चौथा मूर्ख कौन है’ ?

बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा, जहांपनाह, चौथा मूर्ख आप स्वयं हैं, क्योंकि आप ऐसे लोगों के बारे में जानने के लिए इतनी मेहनत कर रहे हैं।

अकबर यह सुनकर हँस पड़े और बोले, बीरबल, तुमने फिर से मुझे बुद्धिमानी से उत्तर दिया। सच में, मैं मूर्खों की तलाश में था जबकि मेरे पास राज्य का ध्यान रखने के लिए और भी महत्वपूर्ण कार्य हैं।

इस तरह, बीरबल ने अपनी चतुराई से बादशाह अकबर को सिखाया कि हमें व्यर्थ की बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए और महत्वपूर्ण कार्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि बुद्धिमत्ता से कठिन से कठिन कार्य भी हल किया जा सकता है।

Akbar Birbal Stories in Hindi With Pictures

Story 3

यह अकबर और बीरबल की एक और मशहूर कहानी है जिसका शीर्षक है “बीरबल की खिचड़ी“।

एक ठंडी सर्दी की रात थी। बादशाह अकबर अपने दरबारियों के साथ नदी के किनारे टहल रहे थे। ठंडी हवा चल रही थी, और दरबारियों ने गर्म कपड़े पहन रखे थे। तभी अकबर ने कहा, “इस ठंड में कोई व्यक्ति नदी के ठंडे पानी में पूरी रात खड़ा रह सकता है क्या?”

दरबारियों में से किसी ने भी यह साहस नहीं दिखाया। सभी का मानना था कि इतनी ठंड में नदी के पानी में खड़ा रहना असंभव है। लेकिन बीरबल ने कहा, “जहांपनाह, मैं जानता हूँ कि एक व्यक्ति इस चुनौती को स्वीकार कर सकता है।”

अकबर ने कहा, यदि वह व्यक्ति इस चुनौती को पूरा कर लेता है, तो मैं उसे पुरस्कृत करूंगा।

बीरबल ने एक गरीब ब्राह्मण को बुलाया और उसे इस चुनौती के बारे में बताया। ब्राह्मण ने अपनी गरीबी के कारण यह चुनौती स्वीकार कर ली। अगली रात, वह ब्राह्मण नदी के ठंडे पानी में खड़ा हो गया।

पूरी रात उसने ठंड में बिताई। अगली सुबह, वह दरबार में पेश किया गया। अकबर ने उससे पूछा, तुमने यह कैसे सहा? तुम्हें इतनी ठंड में कैसे गर्मी महसूस हुई ?

ब्राह्मण ने विनम्रता से उत्तर दिया, जहांपनाह, दूर एक दीया जल रहा था। मैं उसे देखकर अपने मन में यह सोचता रहा कि वह दीया मुझे गर्मी दे रहा है। अकबर ने यह सुनकर कहा, तुमने धोखा किया है। दीये की रोशनी से तुमने गर्मी पाई और इस तरह चुनौती पूरी की। इसलिए मैं तुम्हें इनाम नहीं दे सकता।

ब्राह्मण बहुत दुखी हुआ और बीरबल के पास गया। उसने अपनी समस्या बताई और न्याय की मांग की। बीरबल ने ब्राह्मण को न्याय दिलाने का वादा किया। अगले दिन, बीरबल ने अकबर को खाने पर बुलाया। अकबर ने खाने का इंतजार किया, लेकिन बहुत समय बीत जाने के बाद भी खाना नहीं आया। अकबर ने बीरबल से पूछा, खाना क्यों नहीं आया ?

बीरबल ने कहा, जहांपनाह, खिचड़ी बन रही है। बस थोड़ा और इंतजार करें।

अकबर ने सोचा कि शायद खिचड़ी बनने में समय लग रहा है, लेकिन काफी देर बाद भी खाना नहीं आया। तब अकबर खुद देखने गए कि खिचड़ी क्यों नहीं बन रही। उन्होंने देखा कि एक मिट्टी के बर्तन में खिचड़ी पक रही थी, लेकिन बर्तन आग से बहुत दूर रखा गया था, और आग के पास एक छोटी सी लकड़ी जल रही थी।

अकबर ने गुस्से में कहा, बीरबल, इस तरह खिचड़ी कैसे पकेगी ? आग बर्तन से इतनी दूर है।

बीरबल ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, जहांपनाह, जैसे उस दीये की रोशनी से ब्राह्मण को गर्मी मिल सकती है, वैसे ही इस आग से खिचड़ी पक सकती है।

अकबर ने बीरबल की बात समझ ली और ब्राह्मण को न्याय दिलाते हुए उसे पुरस्कार देने का आदेश दिया। इस तरह बीरबल ने अपनी चतुराई से एक बार फिर से साबित किया कि बुद्धिमत्ता और तर्कशक्ति से किसी भी परिस्थिति का सामना किया जा सकता है।

 

 

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